Only after last tree is cut down. The last of the water drop is poisoned. The last animal destroyed. Only then will you realize, you can't eat money............. Indian Prophecy
Friday, December 23, 2011
Journey throgh Life
Thursday, December 22, 2011
मुझे भी भारत रत्न दो
आजादी के बाद के इतिहास में शायद ये पहला पहला मौका होगा जब भारत रत्न सम्मान पर इतनी चर्चा सुनने में आती है. शायद ही कोई सप्ताह ऐसा छूटता होगा जिसमे इस चर्चा से भेंट न होती हो. पंडित से लेकर निरक्षर तक भारत रत्न के विषय में बेबाकी से अपने विचार रखता मिल जाएगा. प्रारंभ में बहुत अच्छा लगा था कि देर से ही सही देश का आम आदमी इन मामलों को लेकर भी जागरूक हो रहा है. अब सिर्फ चंद लोग फैसला नहीं लेंगे कि किसे ये सम्मान मिलाना चाहिए और किसे नहीं, एक बयार चलेगी जो हर दिल को छू कर निकलेगी और कहेगी कि ये है वो इंसान जिसने राष्ट्र के विकास में गंभीर योगदान दिया है, बस अब घोषणा कर दो. वैश्विक द्रष्टिकोण से मालूम नहीं किन्तु विश्व की १/६ आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले इस सम्मान का महत्व स्वयं सिद्ध है.
Ram
Tuesday, December 13, 2011
From "History" page of Landau Institute for Theoretical Physics
Sunday, December 11, 2011
मूलभूत शिक्षा
रूस में रक्त क्रांति (प्रारंभ १९०५) से भी पूर्व जो अध्यापक बच्चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना देते थे उनके लिए साइबेरिया भेजने तक की कठोर सजा दी जाती थी, ऐसे अध्यापक की लोक समाज में प्रखर आलोचना होती थी और उन्हें घ्रणा की द्रष्टि से देखा जाता था. महाभारत काल में भी शिष्यों की पिटाई पर मृत्यु दंड के प्रावधान का उल्लेख है. लेकिन हमारे यहाँ पहले दिन की सुरुआत समझावन लाल से ही होती है. हर कक्ष में अध्यापक वजह-बेवजह बच्चों के स्वाभिमान की ऐसी तैसी करते मिल जायेंगे. घर परिवार से सम्बंधित झुंझलाहट भी अक्सर यहीं निकलती है. समझ गयी तेल बेचने, बच्चों ने पाठ नहीं याद किया या गुरु जी अनुत्तरित हैं पिटेंगे क्षात्र. हर समस्या का समाधान डंडे से होता है. जो जितना गरीब है उतना ज्यादा पिटेगा. घर में भी हालत विपरीत नहीं होते, बड़े नुकसान करें या बच्चे आफत बच्चों के सर फूटनी है. बच्चों के आत्म सम्मान (watch Brothers Karamazov) को मिट्टी में मिलाने का काम परिजन बड़ी जिम्मेदारी से निभाते हैं. अपने पराये का ज्ञान सर्वप्रथम बच्चों को माँ ही देती है.
नतीजतन ५वीं गुजरते गुजरते अधिकांश बच्चों का शिक्षा से लगाव मर चुका होता है. आगे बढ़ना भी चाहें तो उनकी नींव में राख और गौरव में भूसा भरा होता है. घर में मूलभूत सुविधाओं का अभाव आगे चलकर धन के प्रति अप्रतिम लगाव और मानवीय असहिष्णुता की पहली सीढ़ी का निर्माण करता है, ये कहना आप को भी यहाँ असमसामयिक लगेगा.
Monday, October 24, 2011
अथ शोध यात्रा
मित्र प्रगतिशील है इसलिए शोध क्षात्र से सच्ची सहानुभूतिपूर्ण भारी गले से अगले महीने के मुहूर्त में शादी का निमंत्रण दे फ़ोन रख देता है। उसे मालूम है कि चाह कर भी ये ५०० किमी दूर उसकी शादी में शामिल होने नहीं आने वाला। सुबह के सात बज चुके हैं, शोध क्षात्र ऊंघते हुए कंप्यूटर पर "job submit" कर दहेज़ (कु)प्रथा को कोसता हुआ बिस्तर का रुख करता है।
जारी...
Saturday, October 8, 2011
८४ हजार जीरो, वाह रे युवा....
Monday, September 26, 2011
रेलम पेल से त्रस्त? केरल से सीखो
कोच्चि। देश की आबादी नियंत्रित करने के लिए क्या यह उपाय सही होगा? केरल में यदि किसी पति ने पत्नी को तीसरे बच्चे के लिए गर्भवती किया, तो उसे जेल की हवा खाना पड़ सकती है! राज्य सरकार इसे लागू करेगी या नहीं, यह बाद में तय होगा, लेकिन केरल महिला संहिता विधेयक 2011 में कुछ ऐसा ही प्रावधान किया गया है। इसे न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर की अध्यक्षता वाली 12 सदस्यीय कमेटी ने मुख्यमंत्री को सौंपा है।
कमिशन ऑन राइट्स एंड वेलफेयर ऑफ वुमेन एंड चिल्ड्रन के मुताबिक तीसरे बच्चे की संभावना के तहत पिता पर न्यूनतम दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा या तीन महीने की साधारण जेल होगी। साथ ही सरकारी सुविधाएं और फायदे अभिभावकों को नहीं दिए जाएंगे। हालांकि बच्चों को किसी प्रकार के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा। आयोग ने कहा है कि नया प्रस्ताव बच्चों के बेहतर लालन-पालन के लिए प्रभावी होगा।
आयोग ने 19 साल की उम्र में शादी करने और बीस वर्ष की उम्र में मां बनने वाली महिलाओं को प्रोत्साहन राशि के तौर पर पांच हजार रुपए देने का भी सुझाव दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी और निजी अस्पतालों में सुरक्षित गर्भपात मुफ्त किया जाना चाहिए।
आयोग ने कहा है कि किसी को भी धर्म या राजनीति की आड़ में 'जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम' में छूट नहीं दी गई है। धर्म, क्षेत्र, जाति या किसी अन्य आधार पर किसी व्यक्ति को ज्यादा बच्चे रखने का अधिकार नहीं है। आयोग का गठन राज्य सरकार द्वारा सात अगस्त 2010 को किया गया था। जिसमें महिलाओं और बच्चों के अधिकार और दायित्व संहिता तैयार करने को कहा गया था।
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थोड़ी समझ परिणाम बड़ा, भारत सरकार के काम की चीज नहीं, वो अभी स्पेक्ट्रम बाँट रही और खेल दिखा रही है। राम को जेल की हवा और रावण को मलाई(जनता का खून) खिला रही है।
Friday, September 23, 2011
तराजू
इतिहास ने खुद को फिर से दोहराया, इस बार मेरा पलड़ा हल्का था.......
Tuesday, August 30, 2011
भ्रष्टाचार, अन्ना, समाज, नेता और राष्ट्र (भाग 2)
तयशुदा तिथि के अनुसार अन्ना का अनशन शुरू हुआ, प्रशाशन को जो मूर्खताएं करनी थीं कीं। बंदी बनाने से लेकर सारी शर्तें स्वीकार करने तक सबकुछ अन्ना हजारे के अनुरूप हुआ और कुछ भी सरकार के लिए बेहतर न हो सका। सत्ता पक्ष ने अंतिम सांस तक आन्दोलन को न तो सहजता से स्वीकार किया और न ही उसकी गंभीरता को समझने का प्रयास किया। विपक्षी दलों ने भी विषय की जितनी उपेक्षा की जा सकती थी की। किसी भी जिम्मेदार राजनेता को वो बात समझ न आ सकी जो सामान्य अशिक्षित नागरिक को भी आसानी से समझ आ सकती थी। बड़प्पन(लाचारी) विपक्षी दलों का, कि कुछ निरंकुश क्षेत्रीय दलों को छोड़ कर किसी दल ने अपने विरोधियों से निबटने के कांग्रेसी/सरकारी तरीके को नकारा नहीं तो सहयोग भी नहीं दिया। कुछ दिनों पहले की अन्ना और अहंकारी राजनेताओं के बीच की लड़ाई बढ़कर आमआदमी और सरकार के बीच तक पहुँच गयी। "परिवर्तन प्रकृति का नियम है" को भूलकर "संविधान और संसद की सर्वोच्चता और उसकी रक्षा" जैसी बातों की राजनीति सदा की भांति चलती रही.
संविधान एक समाज को सुचारू रूप से चलने का साधन न होकर जैसे सर्वशक्तिमान ईश्वर के वचन हों। समाज और देशकाल में परिवर्तन होगा तो संविधान में परिवर्तन करना ही पड़ेगा। ६० साल पहले लिखा गया संविधान उस समय के समाज के परिद्रश्य में बनाया गया था, वो उस समय के भविष्य की परिकल्पना थी। आज के परिद्रश्य में हम पर परिपक्व चिंतन की मजबूरी और जिम्मेदारी है, ताकि हम बेहतर कल की परिकल्पना कर सकें। तकनीकी से लेकर मानव व्यवहार तक कोई चीज ६० वर्ष पूर्व, जैसी आज है, परिकल्पित भी न रही होगी।
रही संसद की बात तो इस आन्दोलन ने सिखा दिया है कि जहाँ क्षण भर में चेहरे बदलते हों लोग ५ वर्षों में सिर्फ एक बार, वो भी वैकल्पिक, निर्णय नहीं लेंगे बल्कि समयानुरूप जब आवश्यक होगा और उसे अपने चयनित प्रतिनिधि को अपने वैचारिक सुझाव देने होंगे तो देगा। बल्कि उस निर्णय में संशोधन भी कर सकेगा तो और भी बेहतर होगा। संसद को उस सुझाव को सुनना समझना ही नहीं उस पर नीतिसंगत अमल भी करना होगा।
हम सब जानते हैं कि राजनेताओं की मनमानी न चली, अन्ना के अनशन को वैश्विक समर्थन और सहयोग मिला। अन्ना हजारे, जिन पर ६ महीने पहले सिर्फ बुद्धिजीवी वर्ग विचार व्यक्त किया करता था, लोगो के दिल की धड़कन बन गए। आन्दोलन की लोगो के दिलों पर पैठ के लिए ये उदाहरण ही काफी होगा कि जिस देश में क्रिकेट एक धर्म है उसकी शायद ही इन दिनों कोई चर्चा हुई हो और बहुतों को तो ये भी नहीं मालूम होगा कि भारतीय टीम इंग्लैंड की टीम से ०-४ से टेस्ट मैच हारी है। समाज के हर वर्ग में हलचल थी ये बताना व्यर्थ है। १२ दिन के अनशन ने हर वो विचार बदला जो दकियानूस था और तर्कसंगत न था।
इस सारे घटनाक्रम ने तीन बातें स्पष्ट कर दीं एक "हमारा वर्तमान प्रधानमन्त्री बेहद लाचार, मजबूर और गौरवहीन है।" दूसरा "हमारा कथित भविष्य का प्रधानमंत्री गैरजिम्मेदार, विवेकशून्य और अहंकारी है." तीसरा "प्रधानमंत्री के अधिकाँश सहयोगी निरंकुश, असामाजिक और कथित रूप से भ्रष्टाचार में लिप्त हैं/थे।" एक बात जो मुझे दिखी वो ये कि हमारे समाज के बुद्धिजीवी वर्ग को प्रस्तुत करने के लिए कुछ पत्रकार और कुछ वकील ही हैं, ये परिद्रश्य बदलना होगा.
खैर घूम फिर कर बिल पारित हुआ और संसद ने छोटा ही सही लेकिन सकारात्मक और वर्तमान मांग को ध्यान में रखकर कदम उठाया। संसद की कार्यवाही देखकर कोई भी साधारण मनोविज्ञानी कह सकता था कि, अनुपस्थित लोगो की तो भूलो, उपस्थित माननीय सदस्यों में शायद ही कोई उस बहस में उत्साह से हिस्सा ले रहा हो। बहस तो बहाना था लोग गंभीर बिन्दुओं पर बात न कर शरद यादव के बडबोलेपन और बेकार के भाषण पर तालियाँ पीट और अट्ठाहस लगा रहे थे। सच पूछो तो किसी बिंदु के समर्थन का मतलब बहस की व्यर्थता थी और विरोध का किसी में साहस न था। बेहतर सुझाव तो राहुल गाँधी की भांति सदन से नदारद थे।
अन्ना और उनकी टीम को इस अभियान में सफलता तो मिली लेकिन जन सैलाब घटते ही टीम के सदस्यों का दमन शुरू हो गया। देश के नागरिक इस बात पे खुश हैं कि अब देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा। कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि जन लोकपाल बिल जादू की छड़ी नहीं है जो भ्रष्टाचार को मिटा दे। ये बात शायद हर भारतीय जानता है, लेकिन वो ये भी जानता है कि जादू की छड़ी के इन्तजार में हाथ में हाथ रखकर कर बैठे रहना मूर्खता है। पहल तो करनी ही होगी। वैसे भी जादू की छड़ी आने न पाए इसके लिए ही हमारी सभ्यता ने हजारों वर्षों का अविश्वसनीय क्रमगत विकास किया है।
देश के सामान्य समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को अगले अंक में चिन्हित करेंगे.....
Tuesday, August 2, 2011
मेहमान
थोड़ी देर पहले ही तो हम लोग गंगा किनारे शाम की सैर को निकले थे। वो भी चुप थे और मैं भी खामोश थी। अन्दर से आवाज़ तो निकलती थी लेकिन गले से बोल ना फूटते थे। उनका हाल मुझसे जुदा न था। कितनी सारी बातें, कितने अरमान हिलोरें मार रहे थे लेकिन कुछ भी बाहर तो न आता था। जी करता था हांथो में उसका चेहरा ले आँखों में आँखें डाल इस पावन गंगा में उतर जाऊं। अजीब ख़याल था। किनारे पहुचे तो वो गंगा की ओर और मैं विपरीत दिशा में मुह कर के बैठे थे। प्रकृति की छटा निराली थी ये एहसास तो बहुत देर से हुआ, मुझे तो बस ये ही ख़याल था की उसके हाथ की दूरी मेरे हाथ से २ सेमी से ज्यादा न रही होगी। कितनी मन्नतें मना डालीं एक स्पर्श की चाह में, माथे पर पसीने की बूंदे छलक आयीं लेकिन ये दूरी तय न हो रही थी। अचानक वो मेरी गोद में सर रख उगते हुए चाँद की सराहना करने लगा। मेरा दिल उछल कर गंगा में छलांग लगा बैठा। थोड़ी देर बाद जब उखड़ी सांसें सामान्य हुईं तो मुझ पर एक मीठी ईर्ष्या का लेप चढ़ गया। मैं इतने सपने संजोने लगी जितने आज तक देखे भी न थे। प्राण पुकारते थे जब भी निकलें बस इसी अवस्था में। घंटों बीत गए होंगे, उसके सर का भार जैसे फूल से भी हल्का था। सैर ख़त्म कर घर वापस जाने की बात निकली तो जैसे शरीर में जान ही न रह गयी। मेरी प्राणप्रिय गिलहरी हमेशा की भांति मेरी हर हलचल की गवाह थी लेकिन आज ये पहला मौका था जब मैं अपनी भावनाएं उसके साथ साझा नहीं कर पा रही थी।
राम
Thursday, July 21, 2011
देर
खाना त्याग प्राण देने का प्रण होता तो घर ही न जाती। थोडा बहुत खाना पेट में गया तो कुछ साहस बंधा, रात में सभी लोगो को इकठ्ठा कर एक ही सांस में कह बैठी, "मुझे गैर जाति के लड़के से असीम प्रेम है, और मैं उसी के साथ शादी करना चाहती हूँ। अन्यथा आजीवन अविवाहित ही रहना पसंद करुँगी। मैं अपना सर्वस्व उसी को न्योछावर करती हूँ।" मैंने दहेज़ प्रथा और समाज की अन्य कुरीतियों के प्रति अपने विचार रखे, जिनका मेरे माता-पिता स्वयं निष्ठां से आजीवन पालन करते आये थे। मुझे याद आता है कि मेरे पिता ने एक बार स्वयं कई महीनो तक मुझसे बात नहीं की थी क्युकी मैंने गाँव की उस लड़की से मुलाकात कर ली थी जिसके भाई ने प्रेम विवाह किया था।
अविश्वसनीय तरीके से बुजुर्गों ने रूढ़ियों की मजबूत दीवार को तोड़ने में क्षण भर की देरी न की। जीवन भर के अनुभव से उन्होंने जो विश्वास और सिद्धांत निर्मित किये थे, मेरे परिकल्पित सुख के लिए रेत के महल से ढह गए। और उनकी जगह ऊंचे और परिपक्व ख्यालों की स्थापना हुई। रात काफी बीत चुकी थी सो आगे का कार्यक्रम सुबह तक के लिए स्थगित हुआ। सुबह होते ही लोग, अपनी वार्गिक श्रेष्ठता को ताक पर रख, मेरे रिश्ते की बात करने निकल पड़े।
दो घंटे भी न बीते होंगे मुझे खबर मिली कि "जो मेरे नाम का हर घडी दम भरता था, जो मेरे बिना जीने को स्वप्न में भी स्वीकार न करता था, जो मेरे समाज से भिन्न ख्यालों का असीम आदर करता था, जो मुझे अपना खुदा कहता था, उसे पाने में मैंने देर कर दी।" पीछे मुड कर देखा तो पाया कि अपने जिन सिद्धांतो को मैं शहर में तिलांजलि दे कर गाँव आई थी वो मेरे पीछे गाँव आ पहुचे हैं और मेरे परिवार वालों के सिद्धांतों के साथ जख्मी पड़े कराह रहे हैं, और मेरा भविष्य असाध्य रोग से अभिशप्त हो अंतिम सांसें ले रहा है। जिस ईश्वर पर अटूट विश्वास था वो कायरों की माफिक मुझे मेरी ही बदहाली पर आंसू बहाता छोड़ नदारद हो चुका है। जीवन के हर पहलू में तर्क खोजने वाली मैं आज असंगत हो सर्वनाश के चौराहे पर बिल्कुल असहाय सी खडी थी। और मेरा भूत मेरी दुर्दशा पर अट्ठाहास लगा रहा था।
राम
Tuesday, June 21, 2011
हम बलात्कारी और हत्यारे भारतीय (विशेषतः उत्तर प्रदेश)
"फरुक्खाबाद - फिरोजाबाद - गोंडा - कानपुर - सीतापुर - फतेहपुर - एटा - मुजफ्फरनगर - मऊ - बाराबंकी - संत कबीर नगर और अब गाज़ियाबाद"
चन्द दिनों में बहुत नाम कमाया। हम पहले बलात्कार करते हैं फिर हत्या।
हम सामान्य बलात्कारी नहीं, मासूम और वृद्धों को भी नहीं बख्शते।
क्युकी हम जानते हैं कि वो विरोध नहीं कर पायेंगे।
शायद ही कोई दिन जाता हो जब हम ये कमाल न करते हों।
रावण - कंस - तैमूर शर्मा जाते होंगे हमारी काबलियत देख कर।
हमें संस्कार में बलात्कार और हत्या करना ही सिखाया गया है।
हमें शासन, समाज और परिवार का भय नहीं क्युकी येही हमारी रक्षा करते और हमें पालते हैं।
हर हिन्दुस्तानी को हम पर गर्व करना चाहिए और दूसरे राष्ट्रों को सीख लेनी चाहिए।
मैं दिल्ली हूँ
इस साल (30 जून तक) दुष्कर्म के मामले
दुष्कर्म- 258
आरोपी- 96.25 प्रतिशत मामलों में आरोपी पीड़ित के परिचित थे
3.75 प्रतिशत मामलों में आरोपी अनजान लोग थे
बंगाल का हाल(2012)
-4 फरवरी : कोलकाता के अलीमुद्दीन स्ट्रीट इलाके में 11 वर्षीया किशोरी के साथ दुष्कर्म
-5 फरवरी: कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में चलती कार में महिला के साथ दुष्कर्म
-23 फरवरी : दक्षिण 24 परगना जिले के फलता में 7वीं की छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म
- 24 फरवरी : दक्षिणेश्वर के पास विवेकानंद सेतु के समीप महिला से दुष्कर्म, अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं
-25 फरवरी : वर्धमान जिले के कटवा में ट्रेन में डकैती में बाधा डालने पर महिला से दुष्कर्म।
शाबाश इंडिया
Friday, June 17, 2011
तु ही रब है
आँखों से रात भर मैं गुनगुनाती रही,
दिल को छूकर महक तेरी जाती रही
नदी अश्कों की बदन से बहाती रही,
शिकायत क्या करती पवन से तेरि मैं
अपना दामन शूलों से उलझाती रही,
धूल चरणो की तेरी पा मस्तक मलूँ
तु खुदा हो मेरा ये मन्नत मनाती रही,
आता न देखा क़यामत का दिन गर
तेरे ग़म से समय को मैं गलाती रही।
राम
Thursday, June 16, 2011
बंधन
Sunday, June 12, 2011
कल नहीं आया
आज भी मैंने हमेशा की तरह नीरसता से फ़ोन उठाया। इस बार की बात बहुत छोटी थी, उसने कुछ बुदबुदाया था जो मैं समझ न सकी। उसके बाद कुछ और फ़ोन आये जो उसके नहीं थे...
दीवार पर लगा कैलेंडर कहता है कि उपरोक्त घटना को घटे ७ साल बीत चुके हैं...
http://www.youtube.com/watch?v=8PdDbB4I3-A&feature=related
Thursday, June 2, 2011
Visit to ICTP, Trieste, Italy
The procedure one need to pass through for boarding is quite straight forward. So faced no problem at all. Turkish Airlines are relatively cheaper so ICTP arranged tickets in the same. It was a break journey via Istanbul but I had to stay there for only 6hrs so postponed the plan to visit the historic city.
It takes six and half hrs to reach Istanbul. It was summer of June and Istanbul was also quite hot. First time I came to see actual Turkish style. Being a corridor to Europe, quite like Europe with a hereditary of Middle Asia. Well six hrs passed in a single glance. Here I had to board to Venice. If I had not met Sadhna from TIFR, here, I could have claimed that one can reach ICTP from HRI not using more then 100 words, not sentences.
The ambiance in Venice was quite pleasant. Low temp, inferiorly populated, clean roads, everything automated, smartly dressed people etc i.e. all good an Indian could dream about. English being barely known to common men one might need to grasp face expression and hand movements to get needed amount of information. For a person going abroad first time let me inform you, in a connected flight you need to collect your luggage only once, at the destination.
Mestre railway station is roughly 15 Km from Venice airport and takes less then 30 minutes to reach there. Low population and plenty no of trains means borrowing a train ticket is not as hectic as in India, where one need to plan a journey before taking birth. Venice to Trieste is around 120 Km, takes couple of hrs. I booked a second class ticket alongside the window, though hardly 5-10 people in a coach. As soon as I boarded it started raining and I found the sight of countrysides along the rail track very captivating. Every edifice was surrounded by green agricultural land all around. Sun sat around 8:30PM. My mood was so much vernal that for almost half an hr I could not realize that I have reached Trieste. If it weren't the last station I was going to be in trouble for a while. Anyway, I had to come back to real world after looking at my wrist watch. I reached Galileo Guest House around 11PM and dinner time was over. Why I should unnecessarily describe the beauty of ICTP site if I have already attached an aerial view.
First task, I could think of finding students from India attending the school. Well, I knew about Ila and Charan but there were 9 of us attending same activity and many more others. My roommate happened to be a nice German guy for different program. I enjoyed staying with him.
One week has passed, and the major activity was to attend lectures and, sometimes, walking around. Didn't go anywhere except for shopping on Saturday, where I purchased nothing. Weather remains nice so no living difficulty, except tasteless vegetarian food. On Saturday and Sunday there was a trip arrangement to Slovenia and Italian-Alps mountain but could not go because I don't have the companion I wish to go with. Meanwhile I met with Goran Senjanovic and Borut Bajc(two well known physicists in my field) and surprisingly they remembered me. I had met them first at Chandigarh last year in SERC school.
Today, friday june 18, is the last day of the school and tomorrow I will have to start back to India. Yesterday there was social dinner and the best part of it was the band playing Latin music and songs. The dinner started at Leonardo(main) building around 7:00PM. Everybody was happily enjoying and dancing (Soon I will post at least one pic). My stay at ICTP passed extremely good, though I am going back with little less, academically.
Thanks to Riaz bhai for providing this pic.
Friday, May 6, 2011
Devoir to friendship
हमें गर्व है कि ढेर सारे सुख दुःख से होते गुजरते हम आज भी अपने मित्रों के प्रति आदर से भरे हुए हैं। और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आजीवन वो हमारे इस जज्बे को जीवित रखे। बावजूद इसके कि शेष दुनिया हमारे प्रति क्या बर्ताव रखती है। तमाम गलत इस्तेमालों के बावजूद ईश्वर हमें औरों को सहयोग देने का साहस प्रदान करे, जैसा कि हमारे मित्रों ने हमारे लिए किया। आज भी जब विभिन्न तरह के झंझावत जीवन को जड़ से उखाड़ने की कोशिश करते हैं तो हमारे मित्रों का अप्रतिम स्नेह, प्रोत्साहन और मार्ग प्रदर्शन ही उबारता है और आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान करता है। हम अपने मित्रों के हमारे साथ चले हर कदम के लिए अत्यंत आभारी हैं।
Thursday, May 5, 2011
My books
Wednesday, May 4, 2011
Sunday, April 24, 2011
लोकपाल विधेयक, राजनीति और समाज
मैं नहीं जानता कि ये लोकपाल विधेयक क्या है, और मेरे ख्याल से हमारे देश की ९०% जनता भी इसके क्लिष्ट प्रारूप से गुरुत्वाकर्षण के साधारण सिद्धांत की तरह अनभिज्ञ होगी। लेकिन समर्थन उन गूढ़ रहस्यों का नहीं बल्कि साधारण से सच्चे इंसान का और सीधी सी बात (भ्रष्टाचार मिटाओ) का है। ये है राजनीति की धार्मिकता।
सरकार झुकी और मसौदा तैयार करने के लिए समिति बनी। मीडिया से भी अभूतपूर्व सहयोग मिला। अच्छा, मीडिया से हर उस काम का सहयोग मिल जायेगा जिससे एक चटपटी खबर बन जाये। गाँधी जी के समय में मीडिया नहीं था वरना देश की आजादी के बाद वो खाली समय में राम धुन न गा कर ढेर सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियों में विज्ञापन कर रहे होते।
देश को आजाद करते कराते बूढ़े हो गए थे तो चड्ढी बनियान का विज्ञापन तो न भाता, लेकिन हाँ शक्ति बढ़ने वाली दवाओं के विज्ञापनों के ब्रांड अम्बेसडर होते। और इतनी जल्दी मारे भी न जाते। तो जैसी भूमिका मीडिया ने अन्ना के समर्थन में निभाई वैसी उनके खिलाफ आरोप और प्रत्यारोपो के दौरान भी निभाई। हमारे देश के नेता आज उतने बड़े मूर्ख न लगते जितने मीडिया के तोड़ मरोड़ कर बयां प्रस्तुत करने से लगने लगते हैं। हाँ बहुतों के कमीनेपन का अंदाजा किसी को नहीं।
जब हम अपने परिद्रश्य से देखते हैं तो हमारे देश के अधिकांश प्रतिनिधि समाज के सच्चे प्रतिनिधि हों ऐसा नहीं दीखते। लेकिन थोड़ी संगत या दैनिक समाचार पत्रों के बीच के पन्नो पर नजर डालने से स्पष्ट होता है कि ये ही इस भयावह समाज के सच्चे प्रतिनिधि हैं। जहाँ दिन प्रतिदिन के होते/बढ़ते अपराध से हम कुछ नहीं सीखते। अपराधी कौन? जवाब: मैं नहीं कोई और (या फिर "वो" जिसने अपराध किया ही नहीं)। "मैं नहीं" ये इस जवाब का अहम् हिस्सा है। "कोई" कभी नजर में नहीं आता। वो गतिमान फलन है। "वो" भुगतते हैं। ये वो समाज है जहाँ नैतिक शिक्षा में सिखाया जाता है बड़ो का आदर करो और सिखाने वाला घर जाकर अपने पिता का सर खोल देता है। बाप सिखाता है दहेज़ लेना पाप है और अपने बेटे की शादी में आने वाली बहू के पिता को लूट लेता है और कम लूट पाने के गम में बहू की हत्या कर देता है। धर्मगुरु "यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" सिखाता है और किसी श्रद्धालु स्त्री का चीरहरण करता है या सेक्स रैकेट चलता है। आप ईशा मसीह की शिक्षाएं पढ़ के निकलता है और पडोसी को प्रताड़ित करता है और उसकी उन्नति को अपना अपमान समझता है। अब आप ही बताओ ऐसे समाज को वर्तमान नेताओं से बेहतर मिलना चाहिए? उपरोक्त कोई चीज किसी नेता ने हमें नहीं सिखाई, लेकिन हमने तो उसके बचपन से ही उसे ट्रेनिंग दी है। अन्ना बेचारे ठहरे सिपाही उन्हें समाज की अच्छी संगत न मिली। वरना वो भी दिग्विजय सिंह की तरह किसी अन्ना के लिए अनाप शनाप और नासमझ आरोप लगा रहे होते। या विभिन्न तरह के घोटाले कर किसी राष्ट्रीय पार्टी के मुख्य वक्ता होते। ऐसे नेताओं को पसंद करने वाला, उनसे लाभ लेने वालो के अलावा, कोई नहीं होता।
घूम फिर कर एक समिति बनी जिसे सत्ता और अन्ना एवं उनके अच्छे सहयोगियों द्वारा मान्यता प्राप्त हुई। और इस समिति से आम इंसान को कोई शिकायत नहीं। फिर अचानक वर्षों पहले की बातचीत का ब्यौरा निकलता है, कुछ सुलझे नेताओं की प्रशंशा का भूत दुम उठाता है और चारो ओर से अन्ना और समिति के लोगो को घेरने और बदनाम करने की फितरत निकल पड़ती है। ये समझना मुश्किल हो जाता है कि आरोपी इतने मूर्ख हैं या आम इंसान को इतना मूर्ख समझते हैं कि उनकी कही हुई बात अटल सत्य मालूम पड़े, शेष मिथ्या। जो CD आज शांतिभूषण का सर फोड़ रही है उसे मीडिया तक पहुचने के लिए इतना इन्तजार क्यूँ करना पड़ा? जब अन्ना ने आमरण अनशन शुरू किया था तब उनके दिमाग में ये बात न रही होगी कि जो बिल पास होगा उसमें अनुसूचित जाति के लोगो को घपले करने की सुविधा न होगी सिर्फ सामान्य वर्ग के लोग ही घोटाले कर सकेंगे। लेकिन अचानक कब्र से बाबा आंबेडकर का भूत टपकता है। और कहता है कि समिति में जब तक अनुसूचित जाति का कोई प्रतिनिधि नहीं होगा तब तक समिति बेबुनियाद है। ऊपर बैठे बाबा आंबेडकर देश के तमाम मूलभूत अनुसूचितों की बेबसी को अपने आंसुओं से उनकी झोपड़ी गीली कर बढ़ा रहे होंगे। और उनका नाम लेकर नोटों के बिस्तर तोड़ने वालों के सिरहाने खड़े होकर पंखा झलने का नाटक करते होंगे। संविधान समिति में दलितों के अनुभव को जिए इंसान की जरूरत थी और आंबेडकर से बेहतर इंसान न हो सकता था सो वे रहे समिति में।
इतिहास के पन्नो को पलटने पर पता चलेगा कि, जिस देश को आजाद कराने के लिए राष्ट्र भक्त क्रांतिकारियों और ईमानदार नेताओं से गली चौराहे पटे रहते थे आजादी मिलने के बाद गाँधी की तरह गौड़ हो गए। और जगह ली तमाम भ्रष्ट जमींदारों और व्यापारियों ने (हास्यपूर्ण विस्तार के लिए कृष्ण चंदर कृत "एक गधे की आत्मकथा" पढ़िए), जिनका एक मात्र उद्देश्य लूट था। नेहरु पटेल अंगरेजों से लड़ सके, देश विभाजन को भी झेल गए, लेकिन इन लुटेरों को न सम्हाल सके। आज हालात बदले नहीं हैं, आज तो आजादी की लडाई भी ये लुटेरे लड़ लेते हैं। जैसा कि अन्ना के अनशन सुरु होते ही दिखने लगा था। शुक्र है तमाम दिलेर समर्थकों का कि अभी तक इनकी जडें इस मंच पर न जम सकीं। लेकिन इनका भय हमेशा रहेगा। और हर घर में है ये दीमक, सो जिस दिन ये लोकपाल विधेयक को लगी, हमें फिर एक अन्ना कि जरूरत पड़ेगी।
इस तरह लोकपाल विधेयक आते रहेंगे, संस्थागत बीमारियों का वैकल्पिक उपचार होकर व्यर्थ होते रहेंगे, जब तक कि राष्ट्र का हर व्यक्ति जिम्मेदार और ईमानदार न होगा। संस्थाओं की बीमारी अन्ना मिटायेंगे, हम कोशिश करें अपने घर की बीमारी मिटाने की।
to be completed/modified...
Saturday, April 16, 2011
जीवन की आस लुभाए न
तू दूर गया दिल टूट गया
ढाँढस अब कोई बंधाये न
कुछ लुटा दिया कुछ मिटा दिया,
कोई लेन देन राह जाये न
सब झूठ हुआ अब सांच कहाँ,
करतब दुनिया दिखलाये न
जग जीता चाहा खुद से हारा
क्या हुआ खुदा समझाए न
ऊपर वाले ने खेल रचे क्यूँ
जब नियम हमें बतलाये न
गिला हो क्या क्यू हो शिकवा
जब शर्म ही हमको आये न
ram
साम्यवचन
खुले आँख घड़ियाँ रहते गर, दुखद स्वप्न डरपाए न
साहस हो जग से लड़ने का, विपदा खड़ी रुलाये न
अंकुश रक्खा गर भावोँ पर, कसमे वादे भरमायें न
विश्वास अटल हो अपनो पर, तो दुश्मन लाग लगाये न
जीवन जीना गर कला बने जो, मौत का खौफ सताए न
स्वीकृत हो गर स्वयं की त्रुटि, अपनो से घृणा लुभाए न
स्वच्छ रहे जो दिल अपना तो, कोई कभी छल पाए न।
Monday, April 11, 2011
मासूम बचपन पर गिद्धों की निगाह (दैनिक जागरण)
कानपुर, प्रतिनिधि : बच्चों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। मासूम बचपन पर इन 'गिद्धों' ने इस तरह निगाह गड़ा रखी है कि बच्चे स्कूल से घर तक, कहीं भी महफूज नहीं हैं।
नगर में वहशीपन की शिकार दिव्या, नीलम, वंदना, आकांक्षा, किरन, प्रीती जैसी लड़कियों की फेहरिस्त तो लंबी होती जा रही है। इसके साथ ही मासूमों का भी बचपन शहर में खतरे से खाली नहीं रह गया है। सितंबर 2010 में स्कूल में दिव्या संग हुआ अमानवीय कृत्या लोग शायद ही भूल सकेंगे। मासूम संग स्कूल में हुए दुष्कर्म के बाद उसकी छोटी बहन में इतनी दहशत है कि उसने स्कूल से ही मुंह फेर लिया। नवंबर में बर्रा में एक ट्यूशन पढ़ाने वाले वहशी ने मानव अंग पढ़ाने के नाम पर मासूम को शिकार बनाने की कोशिश की। 2011 जनवरी में चकेरी के एक स्कूल में गेम्स टीचर ने प्रयोगात्मक परीक्षा के नाम पर स्कूल में छुंट्टी के दिन बुलाकर गलत काम किया। इसी दिन नौबस्ता में एक डांस टीचर ने कक्षा तीन के मासूम को कई दिनों तक हवस का शिकार बनाया। अप्रैल में कार सवार दरिंदों ने 12 साल की मासूम को अगवा कर अपनी हवस मिटाई। इसी तरह बिबियापुर में कक्षा एक की बच्ची संग दुष्कर्म हुआ। इन सभी घटनाओं में शिकार मासूमों को हवस का शिकार बनाने वाले उन पर काफी समय से निगाह बनाये हुए थे।
शाबाश इंडिया :(
Saturday, March 26, 2011
झूठा सच
करती हूँ दिल उनको अर्पण
मान सम्मान उन्ही चरणो में
स्वीकारें मेरा पूर्ण समर्पण
वो मेरा सच वो सर्वोत्तम
भूलूं उन्हें तो निकले ये दम
सुबह उन्ही से साँझ उन्ही से
वही तो हैं मेरे सच्चे हमदम।
..time passes..
तू झूठा तेरा दर झूठा
वचन थे तेरे कपट भरे
छल प्रपंच से मुझको लूटा
कुत्ते की तू मौत मरे
दिल से पूजूं राम को मैं तो
सर्वनाश तेरा हो जाये
मुझको धोखा देने वाले
चैन कभी भी तुझे न आये।
Sunday, March 13, 2011
Treasury of India
No matter how many times it already has happened, The Lady is again pregnant. Sometimes because the married couple don't have satisfactory no. of male children, sometimes it's just because of unawareness or carelessness, sometimes because tools of protection are too costly to afford, and very often the almighty GOD is responsible for all the holy craps.
Neither the innocent lady nor the stupid husband are ready to take the responsibility for the present deed. Half a dozen children, already present in the home, are weeping and crying. Almost naked, empty stomach and probably each of them is struggling with this or that kind of hidden illness ,representing the economical condition and incapability of upbringing the child, of parents. Every old cock is celebrating and is happy for this mishap. No-one feels any need to care the health, diet of the pregnant lady. Only thing people are waiting for is the time when medical checkup can test the sex of the child.
Depending on the medical report, though pre-birth sex checkup is illegal and crime, the lady is mentally treated for rest of her life. The pregnancy period is at the edge still the lady works more then average and don't get enough rest. The child inside her womb is under threatening conditions and is not sure that it's going to be normal entry in the world or the premature birth leading to death (reason of 39% of total infant death in first year TOI) or even if child survives whether he(she) will get the breast feeding and see the mother.
Whether the Lady gives normal birth or undergoes a cesarean, if survives is almost dead. Rest of the family is, whether celebrating joy or weeds, expects from the lady to come back to the normal active life as soon as possible, no matter how week she is. Father of the new born child has celebrated enough and enjoying the company of gamblers or drunken and is not worried at all about the future and needs of new born child or his wife.