Thursday, December 22, 2011

मुझे भी भारत रत्न दो


आजादी के बाद के इतिहास में शायद ये पहला पहला मौका होगा जब भारत रत्न सम्मान पर इतनी चर्चा सुनने में आती है. शायद ही कोई सप्ताह ऐसा छूटता होगा जिसमे इस चर्चा से भेंट न होती हो. पंडित से लेकर निरक्षर तक भारत रत्न के विषय में बेबाकी से अपने विचार रखता मिल जाएगा. प्रारंभ में बहुत अच्छा लगा था कि देर से ही सही देश का आम आदमी इन मामलों को लेकर भी जागरूक हो रहा है. अब सिर्फ चंद लोग फैसला नहीं लेंगे कि किसे ये सम्मान मिलाना चाहिए और किसे नहीं, एक बयार चलेगी जो हर दिल को छू कर निकलेगी और कहेगी कि ये है वो इंसान जिसने राष्ट्र के विकास में गंभीर योगदान दिया है, बस अब घोषणा कर दो. वैश्विक द्रष्टिकोण से मालूम नहीं किन्तु विश्व की १/६ आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले इस सम्मान का महत्व स्वयं सिद्ध है. 

एक दिन आया जब (शायद) अडवाणी जी ने पत्रकार वार्ता में अटल जी को ये सम्मान दिए जाने की आकांक्षा जाहिर की. अधिकाँश प्रधान मंत्रियों को जीते-मरते ये सम्मान मिला है, उन्हें भी ये सम्मान प्रदान किया जाना स्वाभाविक प्रक्रिया होता; भले ही उनके प्रधान मंत्रित्व में लोगो को रेडियो पर उनकी बोगस कवितायें सुननी पड़ती थीं. लेकिन अडवाणी जी ने वाजिब तरीके से अनुशंशा न कर मीडिया के सामने वाहवाही लूटते हुए अटल जी के भारत रत्न होने की संभावनाओं पर पलीता लगा दिया. इतना ज्वलंत विचार पहले किसी नेता के दिमाग में नहीं रेंगा था. नेताओं ने अपनी पार्टी के जुझारू नेताओं, जिनके सामने आज के नेताओं का कद बौना है, से बदला लेना सुरु कर दिया. नेता सुनते गाली देने वाली जनता ने इन सबको भी लपेटा.

अगले स्तर का छिछोरापन तब सुरु हुआ जब नेताओं की जगह सुशिक्षित(??) लोग लेने लगे. फिर क्या था हर गली नुक्कड़ पर सुझाव सुरु हुए, जिसे अपने घर में ख़त्म राशन का होश नहीं है वो भी अपनी संगत में दो चार नाम सुझा रहा है. भारत की संस्थापना और क्रान्ति के जनकों से लेकर लूटमार और डाकू तक सारे नाम सुझाए जा चुके हैं. शरद पवार और कबीर के बीच के सारे फासले मिट कर स्वच्छ लोकतंत्र की मुनादी कर रहे हैं. ५००० साल पुराने मुर्दे भी कब्रों और श्मशान घाट से उठ उठ कर अपने अपने नाम सुझा और दावेदारी पेश कर रहे हैं. राम-रावण, कृष्ण-कंश, भीष्म-ध्रितराष्ट्र सब एक दूसरे की सिफारिश कर रहे हैं.

हालत ये है कि अब तो "भारत रत्न" शब्द कान में पड़ते ही स्वाभिमान को ठेस पहुचने लगती है. लगता है कहीं दूर अँधेरे से कोई गालियाँ दे रहा है. कारण संभवतः किसी के द्वारा मेरा नाम न सुझाना होगा. सम्मान पाने का स्वाभाविक हकदार हूँ, राष्ट्र का कुछ ख़ास नुकसान नहीं किया, कर्म शून्य और बेरोजगार भी हूँ, घोटाले, बर्बरता, हत्या, बलात्कार और किसी भी प्रकार के शोषण करने का मौका हाथ नहीं आया और मेरे नाम से भारत की पहचान नहीं, भारत के नाम से मेरी पहचान है.       
Ram

3 comments:

  1. Vicharsheel manushya ko bahut dukh uthane padte hain, wo bhi jinke apne hone par sandeh ho. Par yahan tak bhi thik hai, takleef to tab badh jati hai jab vicharsheel maushya sajjanata ke chungul me bhi fasa ho.

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  2. @Anonymous: ये तो स्पष्ट है कि आप की टिप्पणी इस लेख पर नही. क्रपया कुछ और कहे ताकि मै आप के भावो को समझ सकू.

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  3. are bhaiya....... e conclusion kahan se aa gaya ki mere vichar uparukt sandarbh me nahin hai. pratham pakti me lekhak ne aapko vicharsheel manushua kaha hai, dwitteya pankti vishay ko "more generalize" (kshamaprarthi) karti hai.

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