बेजुबाँ लफ्जों को यादें सताती रही
आँखों से रात भर मैं गुनगुनाती रही,
दिल को छूकर महक तेरी जाती रही
नदी अश्कों की बदन से बहाती रही,
शिकायत क्या करती पवन से तेरि मैं
अपना दामन शूलों से उलझाती रही,
धूल चरणो की तेरी पा मस्तक मलूँ
तु खुदा हो मेरा ये मन्नत मनाती रही,
आता न देखा क़यामत का दिन गर
तेरे ग़म से समय को मैं गलाती रही।
राम
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