Sunday, June 12, 2011

कल नहीं आया

आज बहुत देर से सोयी थी, शायद सुबह। नींद ने पूरी तरह आगोश में भी नहीं लिया था, तभी उसका फ़ोन आया। यूँ तो उसका फ़ोन रोज ही कई बार आता था। लेकिन मालूम नहीं उसकी मासूम बातों से कब मिठास चली गयी। समय के साथ बदलाव आते हैं, उसमे भी आये होंगे और मुझमे भी। लेकिन उसका फ़ोन आते ही अजीब सी बेचैनी होने लगती थी। ये बेचैनी मेरे पूर्वाग्रहों से संचालित थी या मेरी असफलता की कसक, कुछ कह नहीं सकती। मेरी फटकार और उसके स्वीकार का ये सिलसिला कब से जारी था बताना मुश्किल होगा।

आज भी मैंने हमेशा की तरह नीरसता से फ़ोन उठाया। इस बार की बात बहुत छोटी थी, उसने कुछ बुदबुदाया था जो मैं समझ न सकी। उसके बाद कुछ और फ़ोन आये जो उसके नहीं थे...

दीवार पर लगा कैलेंडर कहता है कि उपरोक्त घटना को घटे ७ साल बीत चुके हैं...
 http://www.youtube.com/watch?v=8PdDbB4I3-A&feature=related

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