Saturday, April 16, 2011

साम्यवचन

विरह हो गर जीवन में तो, प्रेम समझ में आये
खुले आँख घड़ियाँ रहते गर, दुखद स्वप्न डरपाए

साहस हो जग से लड़ने का, विपदा खड़ी रुलाये
अंकुश रक्खा गर भावोँ पर, कसमे वादे भरमायें

विश्वास अटल हो अपनो पर, तो दुश्मन लाग लगाये
जीवन जीना गर कला बने जो, मौत का खौफ सताए

स्वीकृत हो गर स्वयं की त्रुटि, अपनो से घृणा लुभाए
स्वच्छ रहे जो दिल अपना तो, कोई कभी छल पाए न।
ram

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