Friday, June 18, 2010

स्वच्छंदता की क्रांति

जहाँ तक है क्रांति का सवाल है, विकसित देशो का विषय नहीं रही| या रही भी तो शायद इतनी सूक्ष्म की अपनी नग्न आँखों में बैठती नहीं (हालाँकि मुद्दा पूर्णरूपेण बौद्धिक है)| जब वो विकसित देशो का मुद्दा नहीं, और हमारा देश भी विकसित नहीं, तो क्यों मुद्दे का स्वदेशीकरण कर डालें| हमारा देश आज कल आर्थिक क्रांति के साथ साथ, या तो राजनैतिक या बौद्धिक कारणों से, और भी बहुत सारी क्रांतियों से जूझ रहा है| जूझ इसलिए रहा है क्यूंकि किसी भी क्रांति का समाज के जिस उचित वर्ग को लाभ मिलना चाहिए, वो नहीं मिलना है ये भी समय समय पर सुनिश्चित होता रहा है| जिस महत्वपूर्ण क्रांति की चर्चा हम करेंगे वो क्रांति हमारे, कथित युवा वर्ग द्वारा चलायी जा रही है| यू तो मर्द और घोड़े कभी बूढ़े नहीं होते ये हमें युवा होने का दावा ठोंकने वाले बूढ़े बता चुके हैं| अतः उन्हें इस युवा वर्ग में सम्मिलित करके घोड़ों का अपमान नहीं करना चाहते| और इस क्रांति को ही कहते हैं स्वच्छंदता की क्रांति| आश्चर्य जनक रूप से कोई भी क्रांति सिर्फ राष्ट्रीय हितो पर केन्द्रित हो जान नहीं पड़ता| अन्यथा १०० में ४० लोग भूखे और नंगे रहे होते| भूख शारीरिक के साथ साथ व्यापक किस्म की नग्नता समेटे चलती है|
अन्य और भी गंभीर विषय पेय जल की उचित व्यवस्था, जनसँख्या नियंत्रण, जंगलो की अत्याल्पता एवं कचरे का उचित प्रबंधन ऐसे उपेक्षित हैं जैसे बच्चे अपनी सौतेली माँ से भी रहते होंगे| देश के शिक्षित एवं प्रशिक्षित वर्गों के लिए गाड़ी बंगले ही सबसे प्राथमिक एवं महत्वपूर्ण क्रांतियाँ हैं एवं वही संभ्रांतता की पहचान भी| हमारे हिन्दू धर्म के देवी देवताओं की भ्रष्ट्रता डॉक्टरों को विरासत में मिली है, क्यूंकि डॉक्टर भी भगवान का ही रूप होता है| जो भी व्यक्ति/वर्ग भगवान् का दर्जा पा जाता है, उन्हें गंभीर से गंभीर पाप करने का प्रमाण पत्र प्राप्त हो जाता |
कुछ दिनों तक तो भ्रस्टाचार का सफाया भी क्रांतियो का लक्ष्य हुआ करता था| लेकिन वो शायद बच्चो के नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम का एक विषय था| क्युकि हमारी उम्र बढ़ने के साथ ही हमारी भ्रस्टाचार के साथ विलेयता बढ़ गयी लगती है| बहुत संभव है की बच्चो के पास भ्रष्ट होने वाली संभावनाओ की कमी रहती है| उनके आस पास की दुनिया भ्रस्टाचार रहित होती है| उम्र बढ़ने के साथ बच्चे की प्राथमिक पाठशाला (घर) में कुकर्मो का ग्रन्थ पाठ्यक्रम में आने लगता है| जब बच्चा देखता है की उसकी मां सिर्फ उसकी या उसके भाई बहनों की ही मां है| पिता आदर्श वाची ढोंगी है| और कुछ इस तरह चीजे चल निकलती हैं जैसे समझौता एक्सप्रेस|
विषय से भटकना अच्छी बात नहीं इसलिए चलते हैं फिर से अपने विशेष मुद्दे पर जिसका नाम है स्वच्छंदता| गौर से देखा जाये यो ऐसा प्रतीत होता है की मेरी बाते गैर जरूरी हैं| क्युकी समाज में लगभग हर प्रकार की स्वच्छंदता प्राप्त है| नैतिक नियमो के विपरीत वाली ही सही| उदाहरंतः अगर बच्चा अपने पडोसी को गाली लगता है तो पिता की छाती फूल जाती है| बड़ो का सम्मान करने से उनकी आज्ञा पालन से मां की नाक कटती नजर आती है| लेखक अगर शोध क्षात्र है एवं क्षात्रव्रत्ति पता है तो उसके घर से ही पहला प्रश्न उठता है, 'ऊपरी कमाई कितनी हो जाती है?'|
तो भ्रस्टाचार, अपराध, अज्ञान, अपमान, अराजकता, अकर्मण्यता आदि की स्वच्छंदता तो हमारे घोर राष्ट्रवादी संगठनों को भी स्वीकृत है| जो स्वच्छंदता शारीरिक संबंधों या प्रेम प्रसंगों की है, बस समस्या वही पर है| संस्कार तो हो नहीं सकता इन विषयों का, सामाजिक नियम या धार्मिक कारण कहे किसी वजह से इस स्वच्छंदता की स्वीक्रति इस समाज में इस क्रांति के क्रांतिकारियों को भी नहीं| एक असाधारण तथ्य ये की जो लोग इस क्रांति के धुर विरोधी है वो हो इसके सबसे बड़े "शोषक" हैं| गुजरात एवं उडीसा के दंगे इस शोषण से उपजे कुछ ऐसे ही घाव है| एक अनोखापन इस क्रांति का ये की इस विषय पर जितनी भी और जिस भी बौद्धिक स्तर की चर्चा हो, इसके विरोध में ही होती है| सरे क्रांतिकारी अकेले मोर्चा सम्हाले हैं| बता भी नहीं सकते की वो क्रांतिकारी है| सभी सिर्फ अपने लिए ही ये स्वच्छंदता चाहते हैं, किसी और के लिए नहीं| कोई भाई चाहता है की उसे अनेक स्त्रियों के साथ व्यभिचार की स्वतंत्रता तो हो लेकिन उसकी अपनी बहन का चचेरे भाई से बात भी करना खटकता है| संघर्ष में आहुति सभी दे रहे हैं, बस आप आँखें बंद कर लो| आप भी आहुति सम्हाल के दीजिये, अगर इन्होने आप को आहुति देते देख लिया तो, दुश्चरित्रता की होली मनाने में क्षण भर न लगेगा|
इस स्वच्छंद समाज में चरित्र निर्माण आप के सामजिक सरोकारों, आप की समाज या राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी, इमानदारी, न्यायप्रियता, दया, करुना, समर्पण, दूसरो का सम्मान करने से नहीं होता| बल्कि इससे होता है की आप विपरीत लिंग के प्रति व्यवहार कुशल तो नहीं हैं| "पापी है, अधम है, घूसखोर है, मां बाप को घर से भले ही निकला हो लेकिन चरित्र वान है|" ऐसा कहने वालो से शायद आप का भी पाला पड़ा हो|


नोट: यह लेख जल्दबाजी में लिखा गया एवं अधूरा है| इसकी अंतरिम प्रति जल्द ही आएगी| मेरा उद्देश्य एक प्रेम कथा लिखने का है, लेकिन पाठक को मेरी प्रेम कथा पढने के लिए तैयार करने के लिए हो सकता है ऐसे ही कुछ और छोटे मोटे ब्लॉग लिखने पड़ें|
राम

No comments:

Post a Comment