Wednesday, July 8, 2009

इन्तजार

सीखी है हमने शर्म उनसे शिकायत करके
हम चले आए यहाँ ख़ुद से बगावत करके
उनकी बेसब्र निगाहें ये कहा करती हैं
जियोगे चंद ही दिन हमसे शराफत करके
हमें यकीं है बहार आएगी इनायत करके
एक हसरत भरी निगाह तो दो पीछे मुडके
वो घड़ी जिसका रहा इन्तजार सदियों से
क्या ख़बर जायेगी यूँ हमें रुसवा करके

राम

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