Thursday, July 9, 2009

इन्तजार

आँखें नम हैं, वाणी गुम है
गला है सूखा, कंठ भी रुंधा
आस लगाये, आप आए
क़दमों की आहट क्यों चुप गई

इन्तजार सदियों का अपना
खोया पाला था जो सपना
हम तो बैठे साथ कोई
यारों की महफ़िल भी उठ गई
क़दमों की आहट क्यों चुप गई


सदियों हमने अंश्रु बहाए
डर है कहीं प्रलय आए
साँसें चलेंगी कब तक जाने
जीवन की आशा भी गुम गई
क़दमों की आहट क्यों चुप गई

धारा समय की रुके पर
हमको अपने साथ बहाए
चलें तो कैसे पास जो तुम
भूल मुझे अब दुनिया रम गई
क़दमों की आहट क्यों चुप गई
राम

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