Wednesday, July 8, 2009

प्रक्रति मनोहर

बूंदों ने फ़िर छेड़ा तन को, अरु सावन ने मन को
वृक्ष तो डोलें पवन संग संग, पर पक्षी छुपायें तन को
पौधे बच्चों सा चहकें, अरु वृक्ष मगन प्रियतम सा
बरबस ही याद आए कोई, रिझाये पास बुलाये हमको
शोर पपीहा करता क्यूंकर, पक्षी कलरव भी है गुम
युगलों ने पाया सुख सागर, विरही जन ने दुःख को
झूमो गाओ नृत्य करो सब, दुल्हन बनी है धरती
प्रकृति की लीला सजी है न्यारी, राम निहारें किसको

राम

2 comments:

  1. रचनायें अच्छी हैं। पर तुकबन्दियो पर थोडा ध्यान और देना सही रहेगा।

    वैसे ब्लाग की शुरुवात के लिये बधाई :-)

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  2. Thanks for the kind suggestion.
    Jo aaya dil me jaisa aaya wo waisa hi likh dia... Kshama kijiye thoda garib type ka writer hu.

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