Thursday, July 9, 2009

इन्तजार

आँखें नम हैं, वाणी गुम है
गला है सूखा, कंठ भी रुंधा
आस लगाये, आप आए
क़दमों की आहट क्यों चुप गई

इन्तजार सदियों का अपना
खोया पाला था जो सपना
हम तो बैठे साथ कोई
यारों की महफ़िल भी उठ गई
क़दमों की आहट क्यों चुप गई


सदियों हमने अंश्रु बहाए
डर है कहीं प्रलय आए
साँसें चलेंगी कब तक जाने
जीवन की आशा भी गुम गई
क़दमों की आहट क्यों चुप गई

धारा समय की रुके पर
हमको अपने साथ बहाए
चलें तो कैसे पास जो तुम
भूल मुझे अब दुनिया रम गई
क़दमों की आहट क्यों चुप गई
राम

Wednesday, July 8, 2009

प्रक्रति मनोहर

बूंदों ने फ़िर छेड़ा तन को, अरु सावन ने मन को
वृक्ष तो डोलें पवन संग संग, पर पक्षी छुपायें तन को
पौधे बच्चों सा चहकें, अरु वृक्ष मगन प्रियतम सा
बरबस ही याद आए कोई, रिझाये पास बुलाये हमको
शोर पपीहा करता क्यूंकर, पक्षी कलरव भी है गुम
युगलों ने पाया सुख सागर, विरही जन ने दुःख को
झूमो गाओ नृत्य करो सब, दुल्हन बनी है धरती
प्रकृति की लीला सजी है न्यारी, राम निहारें किसको

राम

इन्तजार

सीखी है हमने शर्म उनसे शिकायत करके
हम चले आए यहाँ ख़ुद से बगावत करके
उनकी बेसब्र निगाहें ये कहा करती हैं
जियोगे चंद ही दिन हमसे शराफत करके
हमें यकीं है बहार आएगी इनायत करके
एक हसरत भरी निगाह तो दो पीछे मुडके
वो घड़ी जिसका रहा इन्तजार सदियों से
क्या ख़बर जायेगी यूँ हमें रुसवा करके

राम

Tuesday, July 7, 2009

जोग


आन मिलो सांवरिया अब तो
अखियाँ पथ तक थाकीं रे
अरु माया सुझाए तंत्र प्रपंच
जग सखियाँ रैना हांसी रे
पथ काल दिशा जग सुबह निशा
भये विस्मक क्षलक लुभावन
कस पान करूँ तेरा प्रेम पिया
बन जाऊँ तेरी दासी रे

राम

जो जस करे सो तस फल चाखा

धन प्रतिष्ठा अंहकार से
निर्मल जीवन गंदलाता है,
संघर्ष शील आंखों को कब
अपनों का सपना भाता है,
हम रहेंगे चलते अपनी राहें
तुम अपनी मंजिल देखोगे,
पर जीवन से जीवों का रिश्ता
तोड़ कहाँ कोई पाता है,
तुम जैसे हो वैसे रहना
पर रुकना मत मंजिल पाकर,
जिनको जानो वो तेरे
है
उन्हें काम तुम्हारा भाता है |

राम