इस बार की सर्दियों में अकारण ही गाँव जा पहुंचा. शहरों की गन्दगी गाँव पहुचे ज्यादा वर्ष नहीं हुए. चारो तरफ पोलिथीन बैग के ढेर, कचरे से पटी नालियां, धूल के उठते जानलेवा गुबार, बेहूदे फ़िल्मी गानों का शोर, और पागल हाथी-घोड़ों की तरह दौड़ते वाहन, कोई महायुद्ध की सी विभीषिका से सिर्फ लाशों का न होना ही एक इतर बात थी. मेरे ट्राली बैग का अनगिनत बार लोगों से टकराना देश की बढ़ती आबादी की घोषणा कर रहा था, और मेरा मुस्कुराकर आगे बढ़ते जाना इस महामारी के प्रति हमारी स्वीकृति की. घर पहुच कर लग रहा था जैसे किसी कारखाने में आ गया हूँ. इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं का अम्बार तो चारो ओर फैला था किन्तु अन्न देवता के दर्शन भोजन से पहले सुलभ न हुए. जिस भी समूह में घुसो, क्षेत्रीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, फ़िल्मी मसाला, क्रिकेट, मोबाइल, एसेमेस, एमेमेस, और सेक्स से सम्बंधित चर्चाएँ. कृषि की न किसी को खबर है न फिकर, हर कोई व्यापारी हुआ जा रहा है (बताता चलूँ कि यही वो काम है जिससे आज इस देश की अर्थव्यवस्था सुद्रढ़ हुई है, और यही वो काम है जो कल देश को डुबोयेगा. न बौद्धिकता की जरूरत, न श्रम की और न ही चरित्र/व्यक्तित्व की). बेवजह हाथ आया पैसा तमाम तरह से प्रकृति का मान मर्दन करने के काम आता है (शहर में भी और यहाँ भी). रात होते ही पड़ोस की गढ़िया, जो हमारे बचपन में तालाब थी और भीषण गर्मी में झुलसते बदन का आश्रय, से असंख्य मच्छरों ने हमला किया तो रात खूनी युद्ध करते बीती. दूर किसी मोहल्ले में १५ वर्षीय बच्चे की चिकनगुनिया से मृत्यु की खबर ने सुबह होने की गुहार लगाई तो बस सामान बाँध वापस आने का दिल करने लगा. भौजाई ने निघौना बनाने का लालच दे रोका तो भाई साहब चर्चा कर बैठे.
भाई साहब: बबुआ, मौसम बड़ा हुई रहो है तो का करिए? या साल....(बीच में ही रुकना पड़ा)
हम: मौसम तो आता जाता रहता है... वैसे इस बार तो कुछ ख़ास नुकसान नहीं हुआ होगा फसल को (पंचवर्षीय सूखे की मार खाया किसान उपज की बात क्या करेगा)!!
भाई साहब: अरे वा मौसम नहीं, अपन मौसम.
हम: अच्छा..आ (हमने अंदाजा लगाया कि हमारे छोटे भतीजे की बात हो रही है... बाकी लोगो का नाम हम जानते हैं.)
भाई साहब: सोचो रहै या साल से स्कूल भेजैं लगिये. वैसे तोये ख़याल से कौने स्कूल मा डालो चहिये?
हम: हमें तो कोई अंदाजा नहीं, कौन सा स्कूल बेहतर है ये तो गाँव में रह के ही पता चल सकता है.
भाई साहब: ससुर (अपरिप्रेक्ष्य), बहुत स्कूल खुल गे हैं आजकल, रोजै खुलत हैं. बिजनेस बना लीन्ह हैन.
हम: कोई, जिसमे अच्छे और समझदार टीचर हों उसी में भेजिए, लोगों से बात कर के पता लगा लीजिये कि कौन बेहतर है.
भाई साहब: अरे, ह्यां निहाय कौनो महतारी-बाप का मतलब कि लरका बच्चा का पढ़त हैं. फीस दई दीन्ह बस छुट्टी.
हम: ......
भाई साहब: आज तो तैं हा, पता लगा ले तनक कि कौन सही रही.
हम: हओ.
नहा धो कर, आधे घंटे तक योग करने का ढोंग किया लेकिन रातों रात काय पलट कहानियों की बातें हैं सोच सुनहरी धूप का ख़याल कर छत पर ही ध्यान मुद्रा में बैठ खाने के बुलावे का इंतज़ार करने लगा. शीघ्र ही माँ ने खाने की थाली छत पर पहुँचा दी. खा-पीकर फारिग हुए तो विद्यालय निरीक्षण के बहाने ग्राम भ्रमण को निकल पड़े.
नजदीक के कुछ नये खुले विद्यालयों में गया तो पता चला कि गाँव के छंटे बदमाश जो अपने काल में स्कूल में कम ताश के फड पर ज्यादा समय बिताते थे, अध्यापक बने बैठे हैं. कुछ अपने काल के सज्जन भी किसी तरह पेट पालने की कोशिश करते मिले, लेकिन ये वो सज्जन नहीं जो सब जान/कर सज्जन हो गए हैं बल्कि वो जिन्हें दुर्जनता का बोध ही नहीं या वो जिन्हें दुर्जनता के लिए आवश्यक प्रष्ठभूमि विरासत में न मिली हो. निराश हो लंगोटिया मित्रों से चर्चा छेड़ दी. सभी ने किसी अन्गरेजीदा स्कूल का ही नाम प्रस्तावित किया सो हम चल दिए उसी की परख को.
भवन दिखने से पहले ही कानों को ए फॉर एप्पल, बी फॉर बॉय एवं टू टूजा फोर की विजय ध्वनि गुंजायमान होने लगी. लगा, यार, चलो कुछ तो दम दिख रहा है. अन्दर पहुंचा तो सर्वप्रथम प्रिंसिपल साहब के चपरासी कम पीए से मुठभेड़ हुई.
हम: भैया जी, प्रिंसिपल साहब कहाँ बैठते हैं.
पीए: क्या काम है?
हम: वो, हमारे बच्चे के एड्मिसन के लिए बात करनी थी.
पीए: इसमें बात क्या करनी है, जुलाई में आओ, फीस दो हो जाएगा.
हम: एक बार इसी सिलसिले में हम प्रिंसिपल साहब से बात करना चाहते हैं.
पीए: नहीं हैं.
हम: कब तक आ जायेंगे?
पीए: (झल्लाते हुए) वो प्रधानी के चुनाव प्रचार में गए हैं, आज नहीं आयेंगे.
पीए साहब व्यस्त हुए तो हम दनदनाते हुए एक कक्षा में घुस गए. अरे, ये तो कभी हमारे साथ पढने वाली कुसुम है, शायद मुझे नहीं पहचानती. धूमिल रंग फिर छटा बिखेरने लगे तो थोड़ी देर के लिए खामोशी छा गयी.
कुसुम: जी, व्हाट इज? (८वी तक हम ही अपनी कक्षा का अंकपत्र तैयार करते थे सो कुसुम जी की करतूत....)
हम: (घबराते हुए) जी वो प्रिंसिपल साहब थे नहीं सो सोचा आप से ही मिल लेता हूँ.
कुसुम: हाँ, पापा, वो तो इलेक्शन में प्रचार के लिए गए हैं.
हम: वो, मेरा भतीजा बड़ा हो रहा है तो उसके एड्मिसन के लिए सोच रहे हैं. क्या आप से कुछ बातें कर सकता हूँ?
कुसुम: ओके, पर अक्चुअली, एड्मिसन तो जुलाई में ही ओपेन होता है.
हम: जी, बस मैं तो स्कूल के बारे में पता करने चला आया था. हालांकि, लोग काफी तारीफ़ कर रहे हैं.
कुसुम: यू नो, हमारे यहाँ इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई होती है (मुझे इनके अंडे याद आने लगे).
हम: वैसे, लगभग कितने बच्चे और अध्यापक होंगे?
कुसुम:सटप(किसी बच्चे से..) देखिये, एल के जी से एट तक कुल ५०० से ज्यादा होंगे.
हम: (मुझे लगा ये कम करके बतायेंगी) और टीचर?
कुसुम: मी, मेरी भाभी, पापा, सुरेश (कुसुम का कथित प्रेमी) और भगवान अंकल (विजिटिंग कार्ड) हैं. कुछ लोग और ज्वाइन करेंगे. (मुझे विद्यालय के इंग्लिश मीडियम होने पर संदेह होने लगा).
हम: वैसे कोर्स स्ट्रक्चर क्या है? मेरा मतलब है, बहुत छोटे बच्चों का छोड़ के.... मेरा मतलब है...
कुसुम: एवेरीथिंग. इंग्लिश, मैथ, साइंस, इतिहास, ए फूल साइलेंट हो जाओ (शायद किसी बच्चे से) भूगोल, नैतिक शिक्षा....
हम: आप क्या पढ़ाती हैं?
कुसुम: मैं तो इंग्लिश और नैतिक शिक्षा पढ़ाती हूँ. सुरेश मैथ और भाभी साइंस, वैसे कोई भी कुछ भी पढ़ा देता है.
हम: क्या मैं बच्चों की किताबें देख सकता हूँ? ये कितने की क्लास है?
कुसुम: ए प्रिंस, अपना बुक्स ले के आओ, कम हियर.
हम: ये सारी किताबें तो हिंदी में हैं !!
कुसुम: ए, इंग्लिश की किताब दिखाओ. (मेरे चेहरे को पढ़ते हुए) इंग्लिश मीडियम है, इंग्लिश तो पढ़ाते ही हैं...
विद्यालय से बाहर आया तो लगा जैसे देश को आजादी मिल गयी और मैं तेजी से क्रिकेट मैदान की ओर कदम बढाने लगा, अचानक ठिठका, हो न हो इसमें भी चल के देख लेते हैं, और मेरे कदम गाँव की दो पास पास की प्राथमिक पाठशालाओं की ओर मुड़ गए. पास जा के देखा तो सीमित बच्चे धमा चौकड़ी मचा रहे हैं. संख्या से कनाडा और जीवन स्तर से सियारा लियान सा. देर तक जब कुछ समझ ना आया तो एक बच्चे को पकड़ कर पूछा "मास्टर साहब कहाँ हैं?" बच्चे ने दूसरे विद्यालय के मैदान में धूप सेंक रही दो महिलाओं की ओर उंगली कर दी, जो बेफिक्र विद्यालय की ओर पीठ कर के कुछ ख्यालों में खोयी मलिक मुहम्मद जायसी की पद्मावती सी लग रही थीं. पास जा कर थोडा दबंगई से
हम: उस स्कूल में आप ही हैं?
एक: हाँ, आप कौन?
हम: प्रिंसिपल कहाँ बैठते हैं (अंदाज लगाते हुए कि वो इनसे अलग होंगे).
दूसरी: आते ही होंगे, मिड डे मील के लिए सामन खरीदवाने गए हैं.
हम: (सोचते हुए कि ये काम भी प्रिंसिपल का है क्या!) कितनी देर में आयेंगे? बाकी टीचर नहीं दिख रहे !!
एक: आज नहीं आयेंगे, बीएसए के साथ मीटिंग पे जाने वाले हैं. आप को क्या काम है?
दूसरी: आप को क्या लगता है हम... (सम्हलते हुए) हम ही हैं टीचर, बोलिए
हम: शिक्षा मित्र भी तो होंगे? क्या वो नहीं आते? उनके नाम बताइए जरा सा, मैं इलाहाबाद से आया हूँ , सभी स्कूलों का एक जैसा हाल है, मेरा आइडेन्टिटी कार्ड देखेंगी (सफ़ेद झूठ, आज का गेटप काम करता दिखा).
पहली: जी हम लोग ही तो शिक्षा मित्र हैं.
हम: मैं स्कूल के अटेंडेंस रजिस्टर देखना चाहता हूँ. इतने कम बच्चे स्कूल में क्यों हैं? (दोनों एक दूसरे का मुंह देखती हैं)
वो:...........
हम: मैं बीएसए से मिलकर ही आ रहा हूँ, क्या उन्हें भी बुला लूं ? प्रिंसिपल को फ़ोन करके बुलाइए अभी....
एक सुर में: जी वो, वो बीमार हैं कुछ दिनों से इसलिए आते नहीं.
हम: स्कूल रजिस्टर.... (दोनों चल देती हैं).
हम: रजिस्टर में तो कुछ २०० बच्चे हैं और लगभग सभी उपस्थित हैं फिर स्कूल में २०-३० ही क्यूँ दिख रहे हैं बाकी बच्चे कहाँ हैं?
दूसरी: आये थे सभी... कुछ चले गए.
हम: कुछ चले गए? १५० बच्चे ११ बजे चले गए? पढ़ा रही हैं मुझे, रोज ऐसा ही होता है?
दोनों:.......
हम: ये रुक्मिणी कौन हैं? और इनकी हफ्ते भर की आगे की अटेंडेंस क्यों लगी है? और ये रोहित साहब १५ दिन पहले आये थे? झूठ नहीं इस बार...
पहली: (घबराते हुए) जी, रुक्मिणी मैडम की शादी हो गयी है पिछले साल और वो कानपुर में रहती हैं. इसलिए..
हम: और ये रोहित...
दूसरी: जी वो इलाहाबाद से आते हैं, तैयारी कर रहे हैं इसलिए कम ही आते हैं.
हम: यानी वो ३० दिन में आते हैं और आगे पीछे का अटेंडेंस लगा के जाते हैं.
दोनों:........
हम: आज आप लोगों ने क्या पढाया है?
दोनों:..........
मैं एक शिकायत पत्र तैयार करता हूँ और दोनों के हस्ताक्षर ले क्रिकेट मैदान की ओर बढ़ जाता हूँ. दूसरी घबराई हुई, शायद, प्रिंसिपल को फ़ोन करती है...
राम