Thursday, September 13, 2012

पशु मानव

राजस्थान के सीकर जिले में एक स्थानीय अदालत ने भैंस के साथ यौनाचार करने के आरोप में एक व्यक्ति को पांच साल की सज़ा दी है (बीबीसी हिंदी में प्रकाशित एक खबर का पहला वाक्य).

सरसरी नजर में तो ध्यान ही नहीं गया। यौनाचार, कैद, आदि सब ठीक ही था। लेकिन बेशर्म नजर अचानक भैंस पर चली गयी। अचानक ठहर जाना पड़ा। अंध-धार्मिक होता तो भैंस या अभियुक्त या दोनों के लिए ऊपर वाले से दुआ या अभिशाप की आश लगाता। आज कल की युवा पीढी एवं कुंठित वृद्धों के जिगर, फेसबुक, से हाल कहने का विचार भी आया, किन्तु लगा ये कुछ ज्यादा ही हो जाएगा, कितने लोग हजम कर पायेंगे, लोग क्या सोचेंगे क्या सोचता है, यही करता रहता है क्या, दकियानूसी विचार क्यों आ रहे हैं, मैं भी सोच सकता हूँ, मेरी क्या गलती अगर लोगो की लग जाती है, शेयर करने से क्या होगा, आज कल तो "असीम त्रिवेदी जी" पॉपुलर हैं सोशल मीडिया पर, जस्टिस तो हो चुका अब और क्या करना है, मैं कौन होता हूँ इस बकवास में पड़ने वाला, "भैंस के आगे बीन बजाते सुना था", ये सब करने की क्या जरूरत थी बन्दे को? क्या वाकई जरूरत नहीं थी, मजबूरी रही हो सकती है, पिस्तौल सर पे रही हो सकती है, शर्मीला था?? नहीं-नहीं ऐसे कैसे कह सकते हैं, मनोरोगी हो सकता है, लेकिन मनोरोगी भी प्रजाति तो पहचानता होगा, दीवाल, पेड़, तकिया... क्या?? वाकई!! सांप भी मर गया लाठी भी न टूटी, इतना स्मार्ट??.......... ये हो क्या रहा है मुझे, साला(अपरिप्रक्ष्य)?

बहुत देर तक जीवन सामान्य रहता है। फिर अनजाने में वो विचार लहराया, 'कुछ २०० वर्ष पहले यूरोप के बुद्धिजीवी वर्ग में "क्या महिलाएं भी इंसान हैं?" को गंभीर चिंतन का विषय माना जाता था, बिना परवाह के कि उस समय भी कई महिलाएं स्वतंत्र, आत्मनिर्भर, विवेकशील, संभ्रांत या आलीशान जीवन जीती थीं'. और न चाहते हुए भी मेरे सर पे फिर बीन बजने लगा और मैं पागुर करने लगा। मुझे नहीं मालूम ये दफा ३७७ क्या होती है। लेकिन एक बात समझ ना आयी। भैंस का शोषण हुआ है सजा तो मिलनी ही चाहिए। उसी भैंस का दोहन करना, बंधक बना के रखना और जीभ की हवस मिटाने के लिए क़त्ल करना शोषण की श्रेणी में क्यों नहीं आता? अगर आता है तो फिर इस पर कौन सी दफा लागू होती है? अगर कोई सी लागू होती है तो जिसने जिसने भैंस का दूध पिया है या मटन मारा है, उसके लिए क्या उपहार है? भैंस-माता क्षमा करना मैं भी तेरा दूध पी के बड़ा हुआ हूँ। जरूरतों की उचित व्याख्या करो.... साला(अपरिप्रक्ष्य). भरे पेट लोग गोबर नहीं खाते। गोबर खाने से स्वास्थ्य बढ़ता है। 

एक बात कहूं? हम सभी तुगलकों को मनोचिकित्सक की जरूरत है...... नहीं-नहीं ये तो हमारे देश की परंपरा ही नहीं है, आर्य हैं हम पगलाते नहीं, जेल ही बढ़िया रहेगा।



http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2012/09/120912_man_sex_with_buffalo_pn.shtml

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