राह में जिसकी हमने पलकों को बिछा छोड़कर,
अपने थे प्यारे थे जो उन सबसे नाता तोड़ दिया;
ख्वाब थे जो जिन्दगी में उनका भी गला घोंटकर,
पास बुलाती मंजिल को पाने का रस्ता छोड़ दिया;
इस रूह का तनहाइयों रुसवाइयों से दिल जोड़कर,
याद करके जिसको हमने रातों को सोना छोड़ दिया;
दिल्लगी का दर्द उनको बताने के लिए स्वीकार किया,
बस मेरे दिल को तोड़कर तनहा अकेला छोड़ दिया;
उन्हें नहीं मालूम शायद उन्होंने क्या गुनाह किया;
Ram
No comments:
Post a Comment