अधरो से मधु स्वर विदा हुए, कटुता का अंगार बन गया।
प्रेम पराग उड़ा वचनो का, आरोप सुलभ श्रृंगार बन गया।
कल का स्वर्णिम पूर्ण समर्पण, धनवानो का दास बन गया।
अनुराग का रूप जुदा होकर, नफरत का संसार बन गया।
चंचलता का ओढ़ के चोला, आदर बढ़ा अपमान बन गया।
क्षीण हुआ बंधन जन्मो का, शपथ जली शमशान बन गया।
फूटा राग का भाग्य द्वेष का, सहसा पूर्ण विकास बन गया।
राधा का अभागा राम लुटा, संगम भी अभिशाप बन गया।
शापित हुआ सम्मान खुदा का, भ्रम दैवी एहसास बन गया।
मर्यादा बढ़ पतित नष्ट हुई, घ्रणित कपट सुरताल बन गया।
भ्रष्ट हुआ मष्तिस्क प्रिये का, प्रियतम चुक संताप बन गया।
उसके कर्मो का लेख सिमट, मेरे आँचल का पाप बन गया।
प्रेम पराग उड़ा वचनो का, आरोप सुलभ श्रृंगार बन गया।
कल का स्वर्णिम पूर्ण समर्पण, धनवानो का दास बन गया।
अनुराग का रूप जुदा होकर, नफरत का संसार बन गया।
चंचलता का ओढ़ के चोला, आदर बढ़ा अपमान बन गया।
क्षीण हुआ बंधन जन्मो का, शपथ जली शमशान बन गया।
फूटा राग का भाग्य द्वेष का, सहसा पूर्ण विकास बन गया।
राधा का अभागा राम लुटा, संगम भी अभिशाप बन गया।
शापित हुआ सम्मान खुदा का, भ्रम दैवी एहसास बन गया।
मर्यादा बढ़ पतित नष्ट हुई, घ्रणित कपट सुरताल बन गया।
भ्रष्ट हुआ मष्तिस्क प्रिये का, प्रियतम चुक संताप बन गया।
उसके कर्मो का लेख सिमट, मेरे आँचल का पाप बन गया।
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