Friday, February 4, 2011

anonymous

अंख पथरा गयी उस जाने वाले के दीदार को, कहना उनसे मेरि हालत पे रोना बेकार का है;
आँचल जरूर होगा आँखों में उनकी सपनो का, मेरे दिल का दामन लगता तो तार तार सा है;
सिये हैं होंठ पर तारी है उनकी यादों से जिगर, हँसना चलना बोलना मेरा नहीं उधार का है;
वो कब रूठा खबर भी तो होने न दी मुझको, अश्क लें लें न जगह मेरि डर तो इस बात का है;
न मालूम कि लेगी कब आगोश में ये मौत मुझे, मैं तो हारा न मालूम अब इन्तजार किसका है;
मिटा देना हर कतरा ओ अर्थी मेरि ढोने वालो, बस ये दिल छोड़ देना मेरा नहीं मेरे यार का है|

2 comments:

  1. कविता की अन्तिम २ पंक्तियां अच्छा वजन रखती हैं...शुरुवात की पंक्तियों में भी थोडा वजन डाल दो तो मजा आ जाये!

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  2. daalunga, abhi premature state me hai.

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