Monday, September 26, 2011

रेलम पेल से त्रस्त? केरल से सीखो

कोच्चि। देश की आबादी नियंत्रित करने के लिए क्या यह उपाय सही होगा? केरल में यदि किसी पति ने पत्नी को तीसरे बच्चे के लिए गर्भवती किया, तो उसे जेल की हवा खाना पड़ सकती है! राज्य सरकार इसे लागू करेगी या नहीं, यह बाद में तय होगा, लेकिन केरल महिला संहिता विधेयक 2011 में कुछ ऐसा ही प्रावधान किया गया है। इसे न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर की अध्यक्षता वाली 12 सदस्यीय कमेटी ने मुख्यमंत्री को सौंपा है।

कमिशन ऑन राइट्स एंड वेलफेयर ऑफ वुमेन एंड चिल्ड्रन के मुताबिक तीसरे बच्चे की संभावना के तहत पिता पर न्यूनतम दस हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा या तीन महीने की साधारण जेल होगी। साथ ही सरकारी सुविधाएं और फायदे अभिभावकों को नहीं दिए जाएंगे। हालांकि बच्चों को किसी प्रकार के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा। आयोग ने कहा है कि नया प्रस्ताव बच्चों के बेहतर लालन-पालन के लिए प्रभावी होगा।

आयोग ने 19 साल की उम्र में शादी करने और बीस वर्ष की उम्र में मां बनने वाली महिलाओं को प्रोत्साहन राशि के तौर पर पांच हजार रुपए देने का भी सुझाव दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी और निजी अस्पतालों में सुरक्षित गर्भपात मुफ्त किया जाना चाहिए।

आयोग ने कहा है कि किसी को भी धर्म या राजनीति की आड़ में 'जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम' में छूट नहीं दी गई है। धर्म, क्षेत्र, जाति या किसी अन्य आधार पर किसी व्यक्ति को ज्यादा बच्चे रखने का अधिकार नहीं है। आयोग का गठन राज्य सरकार द्वारा सात अगस्त 2010 को किया गया था। जिसमें महिलाओं और बच्चों के अधिकार और दायित्व संहिता तैयार करने को कहा गया था।

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थोड़ी समझ परिणाम बड़ा, भारत सरकार के काम की चीज नहीं, वो अभी स्पेक्ट्रम बाँट रही और खेल दिखा रही है। राम को जेल की हवा और रावण को मलाई(जनता का खून) खिला रही है।

Friday, September 23, 2011

तराजू

आज पता नहीं क्यूँ दिल में अजीब सी हलचल हो रही थीकोई सुख दुःख की बात थी, कोई ईर्ष्या या आत्मविभोर करने वाली भी बात थीऐसा कोई काम भी किया था कि भयभीत होतीलेकिन घबराहट थी कि जाने का नाम ही लेती थीहर पल बस एक ही बात सूझती थी, उससे बात करनी चाहिएलेकिन रात काफी बीत चुकी थी और देर शाम ही तो बात हुई थी इसलिए फ़ोन कर उसकी नींद में दखल देना मुनासिब समझासारी रात लम्बे डरावने सपने सी बीती, भोर होते रहा गया तो उंगलियाँ स्वयं ही फ़ोन पर चलने लगींपूरी घंटी चली गयी फ़ोन उठाऐसा बिरले ही होता था, तब जब वो किसी छोटे मोटे काम के लिए फ़ोन से दूर होज्यादा देर इन्तजार कर सकी और दुबारा डायल किया, तीसरी बार, ... दसवीं बार, कुछ १० मिनट बीत गए फ़ोन उठाअब दिल की धड़कन तेज हो चली, अन्दर की हलचल उँगलियों के कम्पन से महसूस हो रही थीकल तक तो उसका स्वास्थ्य ठीक था, रात में बहार जाने का कोई औचित्य था और होता भी तो फ़ोन लेकर तो जाताअँधेरा अभी छंटा था इसलिए उसके घर जाने का विचार भी अन्दर ही कुढ़ता रहाफिर से फ़ोन ..... कुछ एक घंटे से ज्यादा का समय इसी क्रम में बीता, और कुछ करने का विकल्प सूझता थाअचानक फ़ोन उठाया गयाआवाज उसी की थी और सामान्य से कुछ विशेष अंतर था आवाज मेंबस एक आश्चर्य बोधक एहसास था की इतनी देर से मैं उसे फ़ोन कर रही थी जबकि सामान्यतः मैं एक बार ही फ़ोन करती थी, उठे या नहींथोडा सामान्य हुई, अनहोनी के बादल छंटे तो गुफ्तगू पर पहुचीवार्तालाप के दौरान उसने स्वीकार किया कि वो रात किसी और के साथ था, और फ़ोन जान बूझकर कमरे पर छोड़ दिया था ताकि मेरा फ़ोन आने की जानकारी उस तीसरे को होदिल घायल था और मैं खामोशमेरी स्वार्थपरता उसकी स्वतंत्रता में बाधा बने इसलिए उसे भरोसा दिलाया कि उसका हर निर्णय मुझे स्वीकार, और उसकी किसी भी वैचारिक या सामजिक पहल पर निर्विरोध समर्थन हैदिन बीतने लगे और मुझे बताया गया कि उपरोक्त घटना विकल्पों की खोज में उठाया गया एक नादान कदम थी और उसे उसके लिए पछतावा है। उसके जीवन में खुद का महत्व जान गौरान्वित महसूस करने लगी। समय और उसके साथ चलते चलते मुझे ये विश्लेषण करने की सुध भी रही कि उसकी ये नादानी वाकई नासमझ कदम था या उस विकल्प रूपी तराजू के भारी पलड़े पर मैं थीधीरे धीरे ये घटना अनलिखा इतिहास हो गयी और हम दोनों ही वर्तमान को जीने लगे

इतिहास ने खुद को फिर से दोहराया, इस बार मेरा पलड़ा हल्का था.......