Friday, May 6, 2011

Devoir to friendship

भविष्य की संभावनाओं की खोज में घर से बाहर निकले साल हो गए थे जब घर से पहली बार फ़ोन आया था हमेंबड़ी बात ये कि हमारे पास तो कोई फ़ोन था फिर भी हमसे संपर्क किया जा सकता थाहमारे दादा जी की मृत्यु का समाचार भी हमें कई दिनों बाद गाँव के मित्र से फ़ोन पर ही मिलामोबाइल का चलन नया था, इसलिए इसे रखना या तो अमीरों का या आवारों का शगल समझा जाता थाक्षात्रों के लिए तो मनाही सी थी और इसे रखना अपराध की श्रेणी में आता थाहाँ तो, ये पहला फ़ोन सिर्फ पहला फ़ोन नहीं हमारे आर्थिक स्रोत का अंतिम संस्कार था, जिस अर्थी में हमें ही मजबूरन आग देनी पड़ीअगले एक साल मित्रों के सहयोग से ही जिन्दगी कटी, जिस सहयोग का कर्ज हम आज तक उतार सके, जीवन भर उतार सकेंगे, और ही उतारना चाहते हैंउतारना नहीं चाहते इसके पीछे की धारणा ये है कि, मित्रों के हर छोटे बड़े सहयोग के साथ उनके लिए जो अपार आदर और अपनेपन का रंग चढ़ा हम पर हमें डर है इस कर्ज उतारने के खेल में उससे भी हाथ धो बैठें और आज जो अत्यंत महत्वपूर्ण हैं वो महत्वहीन हो जायें हमारे सन्दर्भ में। मित्रता हमने पहले भी की थी परन्तु मित्रता की असीम महत्वता से परिचय बनारस वास के अंतरिम दिनों में ही हुआ।

हमें गर्व है कि ढेर सारे सुख दुःख से होते गुजरते हम आज भी अपने मित्रों के प्रति आदर से भरे हुए हैं। और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आजीवन वो हमारे इस जज्बे को जीवित रखे। बावजूद इसके कि शेष दुनिया हमारे प्रति क्या बर्ताव रखती है। तमाम गलत इस्तेमालों के बावजूद ईश्वर हमें औरों को सहयोग देने का साहस प्रदान करे, जैसा कि हमारे मित्रों ने हमारे लिए किया। आज भी जब विभिन्न तरह के झंझावत जीवन को जड़ से उखाड़ने की कोशिश करते हैं तो हमारे मित्रों का अप्रतिम स्नेह, प्रोत्साहन और मार्ग प्रदर्शन ही उबारता है और आगे बढ़ने का उत्साह प्रदान करता है। हम अपने मित्रों के हमारे साथ चले हर कदम के लिए अत्यंत आभारी हैं।


Thursday, May 5, 2011

My books



I wish, If I could read all these books, and several others of the same category, in my life time. Until few months back almost equivalent collection of philosophical, theological, spiritual and so.. books by legendary philosophers and mystics also contributed in the glory of my collection. But suddenly style of thinking and purpose of life changed and totally different perspective appeared. After that all those books looked me rubbish and confusing. Could not destroy those, as I didn't wanted to create dispute of destroying kind of "GOD's words". Gifting to others could be an attempt to decimation of their lives, so I moved those to HRI library.