Wednesday, December 23, 2009

विकास धारा बह रही सदा
कुछ डूब गए कुछ पार लिए
इस संघर्ष के जीवन से
कुछ जूझ रहे कुछ भाग लिए
हम किंचित मात्र डोल सके
सब देखा किये आँख मूँद लिए
जो खोता गया उसे भूल गए
जो पास रहा वो त्याग दिए
अब जाये कहा कोई रा नहीं
मंजिल ढेरो पर चाह नहीं
कभी तुमको पाना सपना था
अब खुद से राम परहेज किये

राम