Tuesday, September 24, 2013

जागो मोहन प्यारे

दूर किसी ग्रह में कनखजूरों का एक संसार था। यूँ तो कनखजूरों के बच्चे कनखजूरों जैसे ही दिखते थे किन्तु पूर्व में ग्रह की भौगोलिक विसंगतियों के कारण भिन्न आवासों में रहने वाले कनखजूरों में सूक्ष्म शारीरिक, भाषाई एवं परंपरागत असमानताएं थीं। कुछ कनखजूरे बातचीत के लिए आगे के २० पैरों का इस्तेमाल करते थे, कुछ पीछे के और कुछ बीच के ... आदि। कुछ कनखजूरों का भगवान ऊपर की ओर सर करके चलता था और कुछ का नीचे और कोई भगवान् तो एक ओर के पैरों से चल लेता था .... आदि। सभ्यता बड़ी विकसित और उत्कृष्ट किस्म की थी। ग्रह छोटा होने और कनखजूरों की पैदावार ज्यादा होने के कारण सब मिश्रित हो गया था।

एक दिन किसी कुंठित कनखजूरे ने जहरीले डंक के बल पर एक कनखजूरी का शारीरिक शोषण किया। दर्शक और दार्शनिक कनखजूरों ने दोनों के वंश का विश्लेषण किया एवं उनमे गहरी एवं नई असमानता को चिन्हित किया। तत्पश्चात दो नए कनखजूरा भगवानों का आविष्कार एवं उनका आवाहन किया गया। दोनों भगवानों ने अपने अपने उपासक कनखजूरों को दूसरे भगवान् के उपासक कनखजूरों को नष्ट करने का निर्देश दिया। चंद दिनों पश्चात शेष कनखजूरों ने भी धर्म चक्र प्रवर्तन में हिस्सा लिया एवं अपने हिस्से में आये कनखजूरों का उद्धार एवं कनखजूरियों का भोग किया।

आज ये युद्ध धर्म युद्ध हो गया है, और धर्म युद्ध में किसी एक पक्ष में जाना ही पड़ता है। आप किस पक्ष में हैं ?

Sunday, September 8, 2013

पानी-२

भीषण गर्मी से झुलसता उत्तर भारतीय शहर, पिछली असंख्य दोपहरियों से जुदा, आज गहरा मौनव्रत धारण किये हुए है। इक्का-दुक्का राहगीरों के गालों पर लू के चमाटों की आवाज के अलावा ध्वनि का और कोई स्रोत समझ नहीं आता। फिर भी ये खामोशी शांति की बजाय सन्नाटा ज्यादा लगती है। पिछले छः महीनों से गरीब-अमीर, सधर्मी-विधर्मी, जाति-विजाति के दिलों को संगीनें जोड़ रही हैं। सड़क के पल्लुओं पर जरदोज नालियों में बहते रक्त में पानी की मिलावट की गयी है। सफाई कर्मी ने नालियों के बगल में ही कचरे के ढेर (प्रमुखतः कंप्यूटर, मोबाइल आदि) बनाये थे जो पुनः माओचा रंग में रंगने को मचले जाते हैं। सारा शहर दूर से देखने पर बाजार ही दिखता है किन्तु खरीदारों-विक्रेताओं का टोटा है। टायरों के जलने की सतत दुर्गन्ध, साँस लेने की प्रक्रिया को बाधित करती है।

गली के एकदम कोने पर बड़े से बंगलानुमा मकान और अन्दर की सम्पन्नता से वहाँ के अन्तःवासियों के स्वास्थ्य का बिलकुल भी अंदाजा नहीं लगता। शयनकक्षनुमा एक कमरे के बीचोबीच बिछे पलंग पर कुछ ५-६ वर्ष का बच्चा मरणासन्न अवस्था में लेटा हुआ पास बैठी मरणासन्न माँ से पानी की गुहार लगा रहा है। माँ बार-२ उसे पिता के जल्द ही पानी लेकर आने का ढाढ़स बंधा देती है। ये सिलसिला पिछली दोपहर से चल रहा है। हर चंद मिनटों में माँ दरवाजे का चक्कर काट आती है। इसी क्रम में कुछ घंटे और बीतते हैं। शाम होते होते इस बार गली के दूसरे कोने पर कई जाने पहचाने लोग इसी मकान की ओर बढ़ते और कुछ लाते हुए नजर आते हैं। माँ बदहवास सी भागी जाती है और उस छोटी सी भीड़ में समा जाती है। उस कोने में उठने वाला शोर इस कोने तक स्पष्ट होने लगता है। कुछ ही समय पश्चात वो माँ फिर स्फुटित हो घर की ओर भागती है। बिस्तर पर बेटे को न पाकर आवाज देते हुए पूरे घर में खोजती है। पूजा के कमरे में बेटे को खड़ा देख पल भर के लिए सुकून महसूस करती है पर अचानक गंगा जल की बोतल को खाली, फर्श पर पड़ा देख, ढेर हो जाती है।