Tuesday, January 17, 2012

गाँधी, क्या से क्या हो गया देखते देखते

यूं तो गाँधी खुद में एक विचारधारा थे. उनका हर कदम, उनके हर कथन आज भी शोध की विषयवस्तु हैं. और इतने वर्षों के चिंतन के बावजूद विद्वान उनके दिल के एक कदम भी करीब नहीं पहुँच सके. मैं ठहरा विज्ञान का क्षात्र अतः मुझसे तो आप वैसे भी मानवीय समझ की अपेक्षा मत कीजिये. आज अचानक स्नान करते वक्त प्राथमिक पाठशाला की प्रार्थना फिर वहां के गुरु जी और फिर वहाँ दी जाने वाली नैतिक शिक्षा याद आ गयी. पर सब कुछ घूम फिर के गांधी के उन तीन बंदरों की कहानी पर जा टिका. सोचा "बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो" ... अचानक बचपन का एक सहपाठी चिल्ला चिल्ला के कहने लगा गुरु "बुरा मत देखो, बुरा मत कहो, बुरा मत सुनो येही कहा है न गांधी जी ने लेकिन बुरा सोचने और बुरा करने के लिए तो मना नहीं किया".... भयभीत होकर भागा तो पाया कि गरम पानी की मात्रा ज्यादा हो रही है. 
सोचने लगा "बुरा मत देखो" का मतलब होगा कि 'अगर कुछ सामने बुरा हो रहा है जो सर्वजन हिताय नहीं है तो आँख बंद कर उस होने की उपेक्षा कर वहाँ से निकल लिया जाए' या 'जो बुरा हो रहा है उसे रोकने के लिए वाजिब प्रयास किया जाय ताकि वो होना रुके और भविष्य में ऐसा होने की संभावनाएं कम हों'.
"बुरा मत कहो" का मतलब ये होगा कि 'चाहे सामने वाला जितना बुरा हो उससे हमेशा मीठी मीठी बातें ही की जाएँ, ऐसी कोई बात न कही जाए जो कडवी हो, भले ही सच कड़वा होता है' या 'बिना स्वार्थ के सत्य और उपयोक्त बात ही कही जाए जो सर्वसाधारण के हित में हो, भले ही वो तीखी और दिल दुखाने वाली हो'
"बुरा मत सुनो" का मतलब ये होगा कि 'दिल को बुरी लगने वाली बात न सुनो' या 'जो बात नुकसान करने वाली हो उसे ध्यान से सुन उचित विश्लेषण कर तार्किक और मूल्यों पर आधारित बात बुरा कहने वाले को समझाई जाये ताकि किसी कथन के परिणाम सुन्दर हों और सोच विकसित'
आप जानें "बुरा मत सोचो और बुरा मत करो" उपरोक्त दो प्रकार के विश्लेषणों में किसमे परोक्ष  रूप  से समाहित है. गांधी की गांधी जानें, लोक चलन में पहले प्रकार का विश्लेषण ही उपयुक्त दीखता है.

बताता चलूँ कि किशोरावस्था तक, इस नैतिक शिक्षा का, विभिन्न उम्र के लोगों द्वारा सुझाये निहितार्थों का निचोड़ एक ही था "सेक्स, सेक्स, सेक्स".

राम